शिक्षा में सहभागिता को बढ़ावा: शुरू होगा पालक-शिक्षक संवाद अभियान
पालक
और शिक्षक मिलकर संवारेंगे बच्चों का भविष्य — वर्ष में तीन बार अनिवार्य बैठक
मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय की पहल पर राज्य के सभी स्कूलों में शैक्षणिक
सत्र के दौरान वर्ष में तीन बार पालक-शिक्षक बैठकों का आयोजन किया जाएगा। पहली
बैठक अगस्त माह के प्रथम सप्ताह में आयोजित की जाएगी,
जबकि द्वितीय एवं तृतीय बैठकें तिमाही और अर्धवार्षिक परीक्षाओं
के 10 दिवस के भीतर संपन्न होंगी। इस संबंध में स्कूल शिक्षा
विभाग के सचिव श्री सिद्धार्थ कोमल सिंह परदेशी ने सभी कलेक्टरों एवं जिला शिक्षा
अधिकारियों को विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए हैं। उन्होंने स्पष्ट रूप से
निर्देशित किया है कि प्रत्येक जिले में इन बैठकों के आयोजन हेतु कार्ययोजना तैयार
की जाए और सुनिश्चित किया जाए कि सभी विद्यालयों में यह प्रक्रिया प्रभावी रूप से
लागू हो।
क्या होता है पालक-शिक्षक संवाद
पालक-शिक्षक संवाद,
जिसे अक्सर पेरेंट-टीचर मीटिंग (PTM) भी कहा
जाता है, एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिसमें
माता-पिता/अभिभावक और शिक्षक आपस में मिलकर बच्चे की प्रगति, शिक्षा और समग्र विकास के बारे में बात करते हैं। यह संवाद सिर्फ स्कूल
में बच्चे के प्रदर्शन तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह बच्चे
के व्यवहार, सामाजिक कौशल, रुचियों और
किसी भी समस्या को समझने में मदद करता है।
पालक-शिक्षक बैठकें न केवल शैक्षणिक संवाद का मंच होंगी,
बल्कि वे बच्चों की संपूर्ण प्रगति पर सामूहिक दृष्टिकोण
विकसित करने का अवसर भी देंगी। इन बैठकों के माध्यम से पालकों को यह समझाने का
प्रयास किया जाएगा कि घर में बच्चों की पढ़ाई के लिए कैसा वातावरण होना चाहिए,
उनकी दिनचर्या कैसी हो, परीक्षा के तनाव से कैसे निपटना है,
और संवाद की आदत कैसे विकसित करनी है। साथ ही,
‘बस्ता रहित शनिवार’ जैसी पहल पर
भी विचार-विमर्श किया जाएगा जिससे बच्चे मानसिक रूप से हल्का महसूस करें और
रचनात्मक गतिविधियों में भाग लें।
बैठकों के दौरान पालकों को बच्चों के आत्मविश्वास को बढ़ाने के उपायों पर भी
जानकारी दी जाएगी। विशेष रूप से उन्हें यह समझाया जाएगा कि बच्चों को खुलकर बोलने
के लिए अवसर प्रदान करना, नियमित स्वास्थ्य परीक्षण में भागीदारी सुनिश्चित करना,
और जाति, आय एवं निवास प्रमाण पत्र बनवाने हेतु आयोजित शिविरों में
बच्चों को शामिल करना कितनी महत्वपूर्ण पहल है। इसके अतिरिक्त ‘न्योता भोजन’ जैसी
सामुदायिक सहभागिता को बढ़ावा देने के लिए भी पालकों को प्रेरित किया जाएगा।
इस पहल में डिजिटल शिक्षा को भी विशेष स्थान दिया गया है। बैठक के दौरान
पालकों को दीक्षा ऐप, ई-जादुई पिटारा, डिजिटल लाइब्रेरी जैसे संसाधनों के बारे में बताया जाएगा,
ताकि वे घर पर भी अपने बच्चों को तकनीक आधारित शिक्षण
सामग्री से जोड़ सकें। इससे न केवल बच्चों की पढ़ाई में रोचकता बढ़ेगी,
बल्कि पालक स्वयं भी शिक्षा के सक्रिय सहभागी बन सकेंगे।
स्कूल शिक्षा विभाग ने स्पष्ट किया है कि अगस्त के प्रथम सप्ताह में आयोजित
होने वाली पहली पालक-शिक्षक बैठक को प्रत्येक स्कूल में भव्य,
सुव्यवस्थित और संवाद-प्रधान रूप से संपन्न किया जाएगा।
तदनुसार,
तिमाही एवं अर्धवार्षिक परीक्षाओं के बाद होने वाली द्वितीय
और तृतीय बैठकें भी सुनियोजित ढंग से कराई जाएंगी। इन बैठकों में बच्चों की
अकादमिक प्रगति, पाठ्येतर
गतिविधियों, स्वास्थ्य,
और सामाजिक व्यवहार के संबंध में पालकों को अवगत कराते हुए,
उनके व्यक्तित्व विकास पर चर्चा की जाएगी—ताकि स्कूल और
परिवार मिलकर बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की दिशा में कार्य कर सकें।
पालक-शिक्षक
संवाद क्यों महत्वपूर्ण है?
पालक-शिक्षक संवाद के कई फायदे
हैं, जो बच्चे की पढ़ाई और भविष्य के लिए बहुत
ज़रूरी हैं: बच्चे के बेहतर विकास के लिए यह बहुत जरुरी है , यह संवाद माता-पिता
और शिक्षकों को एक-दूसरे के दृष्टिकोण को समझने में मदद करता है। शिक्षक बच्चे के
स्कूल में व्यवहार, सीखने की शैली और दोस्तों के साथ संबंधों
के बारे में बता सकते हैं, जबकि माता-पिता घर पर बच्चे के
व्यवहार, रुचियों और चुनौतियों के बारे में जानकारी दे सकते
हैं। इस जानकारी से बच्चे के लिए घर और स्कूल में एक जैसा और सकारात्मक माहौल
बनाने में मदद मिलती है। समस्याओं की पहचान करने और उनका समाधान करने में भी यह
उपयोगी है, यदि बच्चा पढ़ाई में कमजोर है,
व्यवहार संबंधी समस्याएं हैं, या किसी प्रकार
के तनाव में है, तो शिक्षक और माता-पिता मिलकर उसका कारण जान
सकते हैं और समाधान के लिए प्रभावी रणनीतियाँ बना सकते हैं। इससे छात्रों को
प्रेरणा मिलती है, जब बच्चे देखते हैं कि उनके माता-पिता और शिक्षक उनके भविष्य को
लेकर साथ मिलकर काम कर रहे हैं, तो उन्हें यह महसूस होता है
कि उनकी शिक्षा कितनी महत्वपूर्ण है। इससे उन्हें पढ़ाई के लिए प्रेरणा मिलती है
और वे स्कूल में बेहतर प्रदर्शन करने की कोशिश करते हैं। इस प्रक्रिया में पारदर्शिता
और विश्वास बढ़ता है नियमित संवाद से
माता-पिता और स्कूल के बीच विश्वास का रिश्ता बनता है। इससे स्कूल की नीतियों,
शिक्षा पद्धति और बच्चे के प्रदर्शन के बारे में कोई गलतफहमी नहीं
रहती।
0 टिप्पणियाँ